Parivartini Ekadashi puja 2023
Parivartini Ekadashi puja 2023 in hindi : सनातन धर्म में एकादशी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और इस साल भर में कुल 24 एकादशी आती हैं। भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी, पद्मा या जलझूलनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से योग निद्रा में चले जाते हैं, और भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन वे अपनी शेषशैय्या पर करवट बदलते हैं। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते समय प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं, इस अवधि में भक्ति और विनय के साथ जो भी मांगा जाता है, वे अवश्य प्रदान करते हैं। इस एकादशी की पूजा और व्रत को विशेष फलदाई माना जाता है।
इस दिन सुबह स्नान के बाद व्यक्ति भगवान विष्णु के वामन अवतार का ध्यान करते हैं, और उन्हें पचांमृत (दही, दूध, घी, शक्कर, शहद) से स्नान करवाते हैं। इसके बाद गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम-अक्षत लगाते हैं। वामन भगवान की कथा का श्रवण या वाचन करते हैं और दीपक से आरती उतारते हैं, फिर प्रसाद सभी को वितरित करते हैं। भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करते हैं। इसके बाद शाम के समय, भगवान विष्णु के मंदिर या मूर्ति के सामने भजन-कीर्तन का कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। एक मान्यता के अनुसार इस दिन माता यशोदा ने जलाशय पर जाकर श्री कृष्ण के वस्त्र धोए थे, इसी कारण इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम को पालकी में बिठाकर पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों के साथ शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी को व्रत करने से सभी पाप नष्ट होते हैं और वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जो व्यक्ति इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, वह तीनों लोकों और त्रिदेवों की पूजा कर लेता है।
शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनाते हुए कहा है कि – त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था, लेकिन वह अत्यंत दानी, सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। वह सदैव यज्ञ, तप आदि किया करता था। अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इंद्र के स्थान पर राज्य करने लगा। देवराज इंद्र और देवता गण इससे डरकर भगवान विष्णु के पास गए। देवताओं ने भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। इसके बाद, भगवान ने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बच्चे के रूप में राजा बलि के पास जाकर विजय प्राप्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – “वामन रूप धारण करके मैंने राजा बलि से तीन पृथ्वी दान की मांग की, और राजा बलि ने इसे स्वीकार किया।
दान की प्रार्थना करते ही मैंने अपनी एक पाद के साथ पृथ्वी, दूसरे पाद के बल से स्वर्ग और तीसरे पाद के सिर पर ब्रह्मलोक को माप लिया। अब तीसरे पाद के लिए राजा बलि के पास कुछ बचा नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने सिर को आगे कर दिया और भगवान वामन ने उनके सिर पर तीसरा पाद रख दिया। राजा बलि की प्रतिज्ञा से संतुष्ट होकर भगवान वामन ने उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया।
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